कुछ दिन पहेले फेसबुक में एक मजाकिया पोस्ट रखी. दिवाली के त्यौहार पर पटाखों की बिक्री पर दिल्ही में सर्वोच्च अदालत ने रोक लगा दी, इस विषय में आरोग्यविषयक जानकारी और नागरिकधर्म, स्वयंशिस्त और त्यौहारों के आनन्द पर तो पहेले ही लम्बी पोस्ट सामाजिक उत्तरदायित्व से रखी हुई थी. तो कुछ विनोद में और इन्स्टाग्राम पे सेलिब्रिटी बन गई महशूर मोडल लैला लोफायर की खूबसूरती की प्रशंसा में.यह रही वो पोस्ट :
चूं कि , पोस्ट हिंदी में थी , तो यह भी हिंदी में ही लिख रहा हूँ. जब यह लिख रहा हूँ तब तक करीब तीन हजार लोगोने उसे लाइक किया, ८0 से ज्यादा लोगो ने शेर भी किया. कुछ संकुचित चित्त वाले लोगो को यह बात हमेश की तरह रास न आई तो उन्होंने एफबी में इसका रिपोर्ट भी किया. ठीक है, लोकशाही है, उन का ये अधिकार है. फेसबुक के तो वल्गारिटी और न्यूडिटी पे बड़े स्ट्रिक्ट मापदंड भी है हर भाषा में. लेकिन पोस्ट में कुछ आपत्तिजनक था ही नहीं. जिस को सोश्यल मिडिया पे रखा न जा सके. तो फेसबुक ने इस को हटाया ही नही, और वो जैसे आप देख सकते हो, मौजूद है.
मानि , सोश्यल मीडिया में यह किसी भी हिसाब से गलत नही है, यह नतीज़ा अधिकृत तौर पे फेसबुक ने ही दे दिया. अधिकार तो प्लेटफोर्म को है , सीमारेखा तय करने का. सोश्यल मिडिया आखिर उन की प्राइवेट प्रोपर्टी है, कोमेंटेटर्स की नहीं. हर एक की सोच और संवेदना अलग हो सकती है, उस के हिसाब से तो कोई भी चल नही सकता. कुछ नियम जो है, उस में यह पोस्ट आपत्तिजनक नहीं है, वोह फेसबुक ने स्पष्ट रूप से कह दिया, तब व्यक्तिगत अभिप्रायो की अदालत वहां समाप्त हो जाती है. सोश्यल मीडिया पे क्या रखना ये या क्या नहीं, वो खुद सोश्यल मीडिया डिसाइड करेगा. फेसबुक- टविटर-इन्स्टाग्राम आदि की यह स्पेस है. वो हटा देते है, जब उन के रूल्स का वायोलेशन होता है तब. हर एक आदमी अपने घर पे बैठ के अपने अनुग्रह -पूर्वग्रह से यह तय नही कर सकता.
लेकिन कुछ मेंटल लोग जज-मेन्टल हो जाते है. चुनावी माहौल गर्म है तो कुछ को राजकीय दावपेच दिमाग में आता है. कुछ हर्ट हो जाने के लिए ओवरसेंटीमेंटल बैठे ही होते है. कुछ को पीछे से प्रोवोक किया जाता है. ज्यादातर ये अद्रश्य रह के किसी के खिलाफ जहर भर के उकसाने वाले लोग पुराने असंतुष्ट और जूठे बदमाश होते है जिन के किसी गलत काम या बात को मैंनेपहेले नकार दिया हो और वो उसका बदला लेने के लिए कानाफूसी करते रहते है. रामायण में अपनी गलती स्वीकार करने के बजाय शूपर्णखा ने सत्यप्रिय राम के ही खिलाफ रावण को उकसाया और सीताहरण हुआ. आगे से चला आता है. तुलसी इस संसार में भात भात के लोग.
लेकिन बहुतो ने जिस का आनन्द लिया और सराहा वो पोस्ट में कुछ मित्रो को यह आपतिजनक लगा (या उन के दिमाग में यह इन्सेप्शन किया गया) यह पोस्ट ऑब्जेक्टीफिकेशन ऑफ़ विमेन है. और ख़ास तौर पे कुछ ( केवल कुछ ही, ज्यादातर तो समजदार और परिपक्व और आनंदमार्गी ही है ) लोगो को यह बिलकुल रास नहीं आया कि एक जानेमाने लोकप्रिय लेखक ने स्त्री के लिए ‘पटाखा’ शब्द क्यों लिखा. काफी सारे जवाब तो वहीँ दिए , लेकिन त्यौहारों में और भी काम होते है सोश्यल नेटवर्क पर एक ही बात को रगड़ने के अलावा. उस पोस्ट के बाद मैं तो कही आगे चला गया लेकिन कुछ लोगो की दिवाली अभी भी वहीँ अटकी हुई है. मुजे तो हंसी आती है के लेखक की चिंता करने वाले मित्रो का खुद का शब्दों के बारे में सामान्य ज्ञान भी कितना अधूरा है. तो चलिए कुछ वृध्धि करते है इस में.
पहेले बात करते है स्त्री या लड़की को ‘पटाखा’ कहने की. यह एक्सप्रेशन तो मेरे जन्म से पुराना है. तकरीबन देश-परदेश में है. हिंदी में पटाखा , अंग्रेजी में बोम्ब या गुजरातीमे ‘फटाकडी’ कहना. अब लेखक को कसे शब्द का प्रयोग करना चाहिए वो कहनेवाले लोगो खुद कितना भाषाज्ञान है ? चलो देखते है.
गुजराती भाषा का सब से मशहूर और बड़ा एवं पुराना शब्दकोश है ” भगवदगोमंडल”. गोंडल के महाराजा भगवतसिंहजी जाडेजा ने स्वयं इस को भारत की आज़ादी से पहले तैयार करवाया था. अब फटाकडी ( गुजराती में पटाखा ) अर्थ उस में क्या है यहाँ देखए :
ફટાકડી
लीजिये तसवीर भी रख देते है, देखिये पांचवा नम्बर का अर्थ :
मानि की, फटाकडी शब्द तब भी गुजराती में था और प्रतिष्ठित शब्दकोश इस का अर्थ लिखता है : नाजुक और सुंदर स्त्री ! अब जय वसावडा की अभिव्यक्ति बदलने से पहले अपने भाषा ज्ञान का विस्तार करे या फिर महाराजा भगवतसिंहजी के भगवतगोमंडल को चेंज कीजिये जिसको पढ़ के मैं बड़ा हुआ हूँ.
वास्तव में, यह सब शब्द प्रशिष्ट नहीं है, तो एसा नहीं है कि उन का अस्तित्व ही नहीं है. इस को ‘slang’ माना जाता है और साहित्य में इस का चलन भी है, उस की डिक्शनरी भी प्रकाशित होती है. यह कोई अस्पृश्य शब्दावली या वर्जित गाली नहीं है. जैसे अंग्रेजी के समानार्थी शब्द ‘बोम्बशेल’. जो ब्यूटीज़ के लिए पूरी दुनिया के मीडियामें इस्तमाल होता है. उसका अर्थ भी शब्दश: पटाखा ही है. इन फेक्ट इसी नाम से १९३३ में होलीवूड फिल्म बनी थी ! तो ऑक्स्फ़र्ड जैसी प्रमाणित डिक्शनरी क्या कहती है यह इस तसवीर में देख लिजिये :
यहाँ भी वही अर्थ है : अति आकर्षक स्त्री. ब्यूटी क्वीन. ऑनलाइन नए शब्दों के लिए लोकप्रिय अर्बन डिक्शनरी उठा के देख लीजिए. यह रहा स्क्रीनशॉट :
मानि की यह कोई वर्जित शब्दप्रयोग नहीं है. कोई सडकछाप रोमियो शाद इसका गलत इस्तमाल कर दे, तो यह ऐसे ही हुआ जैसे शेक्सपियर के महान रोमेंटिक नायक रोमियो शब्द का हम इस्तमाल कोई टपोरी के लिए कर रहे है अनजाने में.
फिर भी कोई अपनी ही सुन्दरता को खुद लोगो के सामने रखने वाली मोडल के लिए पटाखा शब्द कहेता है और अगर चंद ओवरसेंसिटिव लोग एसा सोचते है के यह स्त्री का अपमान है तो ध्यान से आगे पढ़े. याद रहे बात तो यहाँ पे ही ख़तम हो जाती है, शब्दकोश से. फिर भी हम आगे जा रहे है.
यह है यूट्यूब की ओफिश्यल लिंक. बीस साल पहले १९९८ में अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘मेजर साब’ फिल्म के गीत मशहूर ‘सोणा सोणा’ की. लाखों व्यूज़ तो इस के यहीं पर है. यह गीत तो काफी जानामाना है. सुदेश भोसले की तो करिअर बन गई उस की वजह से. अमिताभ बच्चन जैसे आज भी सम्मानीय और शालीन कलाकार की होम प्रोड्क्शन की फिल्म का गाना उन्हीं पर फिल्माया गया है. और उस में तो पुरा देश ज़ुमता रहा ” इक पंजाबन…कुड़ी पटाखा हो गई” गीतकार देव कोहली भी पंजाबी थे. अमिताभ की माता तेजी भी पंजाबन थी , फिर भी यह आया. भारत के सख्त माने जाने वाले फिल्म सेंसर बोर्ड ने इसे पास भी किया और आज तक इतने सालो में पुरे हिन्दुस्तान में से एक भी आवाज़ नहीं उठी के कुड़ी पटाखा कहने से स्त्री का ओब्जेकटिफिकेशन हो गया ! पंजाब में तो शायद आम होगा. दलेर मेहँदी का पहला गाना भी ‘कुड़ी पटाखा’ ही था. और हनी सिघ का लडकियाँ जिस पर जूमती है वो गाना भी ‘बोम्ब सी लगती मैनू’ था. खैर, बात सोणा सोणा की करे. किसी के दिमाग में आज तक एसा नहीं आया. मैं ने लेख तो क्या एक फेसबुक पोस्ट तक नहीं पढ़ी इस गाने के शब्दों के खिलाफ ! शादीब्याह में पूरा परिवार ज़ूम के गाता है, आज भी. गुजरात में भी इस गीत पर. तो क्या ‘अमिताभ बच्चन ने स्त्री का ओब्जेक्टीफिकेशन किया’ एसा ओब्जेक्शन लिया किसी ने ?
एसे गाने और भी है कुड़ी पटाखा वाले. ‘अपने दम पर’ फिल्म का एक है, रिचा शर्मा का गाया हुआ भी एक है, रिचा चढ्ढा पे फिल्माया गया एक और भी है. सब की लिंक्स रखूंगा तो अप बोर हो जायेंगे. सर्च कर लिजिये इतना शौक है तो. भोजपुरी गानों का तो भंडार है. लेकिन, एक लिंक पढने योग्य है. जिन स्त्रीयों को एतराज़ है, उन की जानकारी हेतु कि यह लिंक एक महिला लावण्या बहुगुणा ने लिखा है. अंग्रेजी में है. इंडियनविमेन ब्लॉग पे है. जिस में इसी चर्चा करते हुए लेखिका ने साफ़ साफ लिखा है कि जिन युवतीओ से उस ने बात की उस में से काफी सारी लडकियों ने यह वर्ड नोर्मल कोम्प्लिमेंट की तरह ही लिया है. शायद जय वसावड़ा को न पढने वाले लोग और कुछ भी पढ़ना वाजिब नहीं समजते होंगे ! महिलाओ के इंटरनेशनल मेगेजिन के टाईटल ‘एल’ ( एल्युरिंग , याने मूंह में पानी लाने वाला – उस का शोर्ट फॉर्म. और यह फेशन मैगेजीन है) से किसी की भावना आहत नहीं हुई. और भी एक लिंक है. “अगर आप जल्ली पटाखा लड़की है” निश्चित तैर पे आज की नारी का बखान करता हुआ. कोई आपत्ति नहीं. तो क्या यह सिलेक्टिव एटेक है जय वसावड़ा की एक छोटी सी फेसबुक पोस्ट पर बड़ा बबाल करने की व्यर्थ कोशिश ? एक लिंक विकीपीडिया की भी है हाउ टु लुक बोम्ब. अंग्रेजी में बहुत सारे लेख मिलेंगे नारी बोम्ब्शेल कैसे बन सकती है ब्यूटी में, महिला लेखिका द्वारा लिखे हुए. हर महिला एक जैसा ही सोचेगी, यह भी स्टिरियोटाइप ही है. ज़लक देख लिजिये :
http://www.indianwomenblog.org/are-you-a-pataka/
http://themoi.in/23-things-youll-totally-get-if-youre-a-jhalli-patakha-girl/
https://www.wikihow.com/Be-a-Bombshell
याद रहे जल्ली पटाखा शब्द का एक गाना ‘साला खड्डूस’ जैसी मल्टीप्लेक्स फिल्म में भी आया था. अधिकृत सेंसर बोर्ड से पास किया हुआ. यह तो स्वाधीन नारी को सूचित करता है. अवमानना नहीं. यह रहा वीडियो :
और यूं भी बड़े झहीन विनयी ए.आर. रहेमान, इम्तियाज़ अली ने एक गीत’ हाई वे’ जैसी लड़की की आज़ादी की बात करने वाली फिल्म में रखा जो हर जगह पे पसंद किया गया. बड़े जानेमाने संवेदनशील गीतकार इरशाद कामिल ने लिखा. ‘पटाखा गुड्डी’ . यह रहा वीडियो. इस को भी ५४ लाख से ज्यादा लोग देख चुके है :
दो अलग तराजू होंगे कुछ कथित क्रातिकारी महिलाओ में. इरशाद कामिल जी और जय वसावडा के लिए. लेकिन पटाखा शब्द के लिए कितनी अच्छी बात उन को गाने वाले लोगों ने की है पढ़िए. और ये भी सोचिये की आज़ादी मानि केवल शिक्षा या शौच नहीं, अपने शरीर के सौन्दर्य को पसंद करने की, उस की प्रशंसा सुनने की या उस की तस्वीर शेर करने की भी आज़ादी होती है. क्या यह भी अधिकार नही है ? स्त्री को सिर्फ एक ही व्याख्या में बंध करना कौन सा प्रोग्रेसिव मोर्डनिजम है ?
यह गीत जिस पे पिक्चराइज हुआ , वो आलिया भट्ट ने तो टेटू ही करवाया था ‘पटाखा’ लिखा हुआ ! बड़े बड़े मीडिया ने कवरेज किया था. गौरी खान के लिए भी न्यूज़ में बोम्ब शब्द का सौन्दर्य की प्रशंसा के लिए ही इस्तमाल किया गया है. मुजे तो याद नहीं किसी महिलाने या खुद उन्होंने प्रोटेस्ट किया हो ! आखिर प्रशंसा ही तो है. देखिए :
http://aajtak.intoday.in/story/alia-bhatt-s-pataka-tattoo-secret-revealed-1-766915.html
timesofindia Firecracker-Alia-Bhatts-pataka-tattoo
https://www.missmalini.com/2016/06/07/gauri-khan-looks-like-bomb-photo/
इलिना डी क्रूज़ने तो अभी एक न्यूज़ में अपने लिए पटाखा शब्द का इस्तमाल साक्षात्कार में किया था और अनुष्का शर्मा ने भी. एक बड़े न्यूज़पेपर की हेडलाइन में करीना कपूर के लिए भी इस्तमाल हुए. मानि सेलब्रिटी अगर महिला हो, और अपने लिए पटाखा शब्द का खुद प्रयोग करे तो किसी को प्रोब्लेम नही. जय वसावड़ा अगर सुन्दरता के बखान में बोम्ब या पटाखा कहे तो दकियानूसी और रिग्रेसिव हो गया ? क्या यह रिवर्स जेंडर बायस नहीं है ? ये स्क्रीनशोटस देखीये.
अभी देखा एक भारतीय टीनएजर लड़की का इन्स्टाग्राम आईडी. तस्वीरे नोर्मल है लेकिन उस ने नाम क्या रखा है देखो, और टेगलाइन क्या रखी है वो भी. मतलब जरुरी नहीं कुछ स्त्री को यह शब्द आपत्तिजनक लगे तो यह हर स्त्री की सोच हो ! :
कई सारे गीत है लेकिन एक बड़ी फिल्म का अक्षय अनुष्का पर फिल्माया गया यह गीत देखिये. 52 लाख व्यूज़ है इसके भी. ‘पटियाला हॉउस’ फिल्म में अगर अक्षय कुमार ने गा लिया ” तेज़ तडाका है, लड़की पटाखा है” तो क्या अक्षय जिन की पत्नी टविंकल खुद आधुनिक बुध्धिमान नारी की मिसाल है और गुजराती में उन कि कताब का सर्वप्रथम परिचय मैंने करवाया था वो पर्सनली स्त्री के लिए बायस्ड सेक्सी शैतान हो गए ? महत्व की बता यह है कि इस गीत को एक स्त्री ने ही लिखा है. अन्विता दत्त ने. तो क्या यह स्त्री का नजरिया संकुचित हो गया स्त्री के लिए ?
गुजराती मीडिया में तो यह हेडलाइन में खूबसूरत लड़की के लिए ‘फटाकडी’ शब्द का इस्तमाल बार बार होता ही है. उस के भी उदाहरण है, लेकिन थक जाओगे सब पढ़ते. मगर ये एक वीडियो एक तस्वीर जरुर देखिए. एक कविता है कविता चोकसी की. दूसरी काव्यकृति है रक्षा शुक्ल की. काफी महीनो से है. दोनों में लड़की को शृंगारिक तौर पे ‘फटाकडी’ कहा गया है. मुझे तो दोनों कृति अच्छी लगी. लेकिन एक शब्द भी किसीने इस के खलाफ कहा नहीं. कहना भी नहीं चाहिए. फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन सर्जक का मौलिक और मूलभूत अधिकार है. लेकिन क्या ये दोगलापन नहीं है के औरत मस्ती में लड़की के बखान के लिए फटाकड़ी लिखे तो माफ़ और पुरुष कह दे तो नारी का पितृसत्ताक रवैये से घोर अपमान ? यह भी है रिवर्स जेंडर डिस्क्रीमिनेशन !
चलो , बहुत हो गया. इतने से जो लोग नहीं समजनेवाले वो तो यूं भी नहीं समजनेवाले. मान्यता से चर्चा नहीं होती. चर्चा होती है ठोस आधार पर, सही संशोधन पर. व्यक्तिगत आलोचना से परे, प्रमाणिक और निष्पक्ष सत्यशोधन के लिए. जैसे यहाँ पे कर रहा हूँ. कुछ भोले लोगो को ट्रुथ को ट्विस्ट कर के प्रोवोक किया जाता है. अफवाहों से उकसाया जाता है, वो यह अगर खुल्ले मन से पढ़े तो कुछ समज आयेगा यही आशा है. यह है लेखक का सामाजिक उत्तरदायित्व की… लोग दूसरो से प्रोवोक हो के , किस पर जजमेंटल हो के नहीं मगर फेक्ट्स पे ओपिनियन बनाये. किसी को अन्याय न करे और मन संकुचित न रखे. थोडा हँसना भी सीखे. थोड़ा खुलापन रखे। हर बात को अपने ही पूर्वग्रह के तराजू से तौलोगे तो कभी मुस्कुरा नहीं सकोगे. बीमार हो जाओगे. पता नहीं जहा पे कुछ भी इरोटिक होता है , वहीँ कुछ लोग टीका करने के लिए बेताब रहते है. बाकी तो दिखते नहीं.
आखिर में बात करे जिस की तसवीर शेर की और कुछ अल्पमति लोगो को उस में गुजरात की नारी का अपमान दिखाई दिया वो पोस्ट की. पहली बता तो यह यह सुन्दरी जर्मन है. नाम है : लैला लोफायर. इन्स्टाग्राम के उसकी प्रोफाइल की लिंक ओरिजिनल पोस्ट में है ही लिकिन यहाँ पे रख दूं : https://www.instagram.com/leilalowfire/?hl=en
अगर विजिट करेंगे तो पता चलेगा कि उस की तो कई सारी बोल्ड तस्वीरे उस ने खुद पब्लिक में शेर की है. यूं भी कभी किसी स्त्री की तसवीर तब ही शेर करता हूँ जब वो उस ने खुद अभिनेत्री या मोडल के तौर पे पब्लिक के लिए खिंचाई हो. जो पब्लिक डोमेन में प्रसिध्ध हुई हो. न्यूड तो कभी शेर ही नहीं की. कुछ लोगो की सोच में जो ‘ओब्ज्कटीफिकेशन ऑफ़ विमेन’ है, वो लैला के लिए ‘सेलिब्रेशन ऑफ़ फिगर’ है. यह मैं नहीं कह रहा हूँ. उस के प्रोफाइल की टेगलाइन उसने खुद रखी है : Curls & Curves from Berlin, Germany ! कर्व्ज़ का मतलब समजाने के लिए डिक्शनरी की जरुरत नहीं. मैं तो जर्मनी गया हूँ, जर्मन लोगो के घर में उन के साथ रहा हूँ. थोड़ी जर्मन भी समज़ आती है. उसने हेशटेग भी जर्मन में रखा है ##Sexvergnügen यानि #sexWeEnjoy. पोडकास्ट भी काफी बोल्ड होते है उसके. और यह उसका हक़ भी है. जरुरी है की चंद गुजराती महिला जिसे आधुनिक फ्रेमिनिज्म मान के चलती हो उसी हिसाब से लैला को अभिव्यक्त होना चाहिए ? उस की इरोटिक फ्रीडम जुर्म है क्या ? और लगता है तो जर्मनी जा कर उन को समजाइए अपनी बातें. देखिये एक जर्मन मिडिया साक्षात्कार में उस का परिचय क्या लिखा गया.
मैं ने तो अपनी पोस्ट में हालाँकि लैला के बोल्ड विचार नहीं रखे. सिर्फ स्माइली के साथ हँसते हुए उस के रूप की प्रशंसा की. इस में पटाखा इत्यादि शब्द के लिए तो उपर सब सबूत रख दिए पुख्ता. और क्या गलत लिखा ? आप को रॉकेट बना दे ऐसा लिखा. तो हवा हवाई की तरह सुंदरता को देखके आप हवा में उड़ने लगेँगे यह लिखा. तो क्या काव्यात्मक अभिव्यक्ति जुर्म है ? आभूषणयुक्त लिखा. ज्वेलरी के इश्तहार में फिमेल मोडल्स नहीं देखी ? प्रदूषणमुक्त लिखा. तो क्या इतनी सुंदर स्त्री के लिए गंदी लिख दूं ? आग लगा दे या धड़कन तेज कर दे लिखा वो तो बड़े नार्मल डायलोग है. नवलकथा में आते है. इंग्लिश में पढ़िए : my heart sets on fire / my heartbeats sound like bomb after seeing her. मुज़ से ज्यादा इरोटिक बाते लैला ने कही है. वो तो सिर्फ यही कहती है। तो वो भी महिला है. आदर्श महिला या सही फेमिनिज्म क्या है, यह चंद लोग तय करेंगे ? यह तो ओप्रेशन ऑफ़ विमेन हो गया.
तो क्या यह मामला कथित सम्भ्रान्त वर्ग अंग्रेजी में इसी एक्सप्रेशन के गाने भी सुन लेंगे लेकिन हिंदी में बिलख जायेंगे यह तो नहीं है ? पुरुष ‘स्टड ‘कहते है. वो तो सब सुन लेते है. देहात के लोक मुहावरे अश्लील या चीप और बड़े लोग की भाषा में कह दो तो शिष्ट ? और यह सीमारेखा तय कौन करेगा ? चिक-लिट् तो बड़े साहित्यकार कहेते है स्त्री के लिए छपती किताबो के बारे में. तो अंग्रेजी में चिक कहो वो नारी की अवहेलना नहीं हुई ? यह तो सामंतशाही हुई ! अभी दिवाली में काफी मेगेजिन आयेंगे जिन के कवर पर बिना वजह स्त्री होगी दिए के साथ. कभी जय की पोस्ट की चिंता करने वाली महिलाओने इस को ओब्जेक्टीफिकेशन मान के आवाज़ उठाई ?
पोस्ट नारी जाति पर नहीं एक सुंदर इरोटिक मोडल पर है. मैं ने तो सुंदर नारी को प्रकृति का उपहार कहा. यह हमारे संस्कृत साहित्य में है. यह भी लिखा के मत छुए. मानि उस का टीजिंग मत करे, सिर्फ अपने भीतर उस के सौन्दर्य के आन्दोलन को महसूस कीजिये. इस को जो लोग पोर्न मानते है उन को तो शायद पता ही नहीं, पोर्न क्या होता है. और आखिर में श्री, ऐश्र्वर्य कि सौन्दर्यलक्ष्मी ( लक्ष्मी भी सुन्दरता की देवी है) कहा और “भुवनमोहिनी” कहा. यह शब्द तो कृष्ण की बांसुरी का नाम है. दुनिया को मोहित करने वाली. यह क्या अपशब्द है ? मतलब, जो लोग संस्कृति की बात करती है, उन को संस्कृत आती नहीं. अच्छा है क्योंकि नारी के अंगसौन्दर्य का वर्णन तो रामायण, महाभारत या शंकराचार्य की सौन्दर्यलहरी या जयदेव के गीतगोविन्द में इस से कहीं ज्यादा मुखर है. लिंगपूजा का देश है. महाकवि कालिदास तो उन में विश्वश्रेष्ठ है. उन को किसी ने विकृत नहीं माना जिन को पर्वत में वक्ष दिखाई देते है मेघदूत में। यह तो पूरे अध्ययनग्रन्थ का विषय है, लेकिन मैं तो इस विरासत के साथ बड़ा हुआ हूँ.
इटाली या ग्रीस में प्राचीन प्रतिमाए है वो तो नग्न भी है. और हमारे देश में तो गुलामी से पहले के हर महान मंदिर में ( सिर्फ खजुराहो नहीं ) मोढेरा से महाबलीपुरम तक एसे शिल्प है जिस के बारे में भी मैं ने लिखा है. कल कोई आ के कहेगा की यह प्राचीन शिल्प या चित्र ‘ओब्ज्कटीफिकेशन ऑफ़ विमेन’ है, मेरी भावना आहत हो गई. केस कर के, गोलीबारी कर के इस को उड़ा दो. तो क्या कुछ लोगो की सोच की वजह से हेरिटेज एक्सप्रेशन को खत्म करना वाजिब है ? यह सोच त्रासवाद की सोच है. ISIS और तालिबान ने बामियान में, ईराक में क्या किया ? उन की मान्यताओ को को जो पसंद नहीं , उन की धार्मिक भावना या फिर स्त्री की उन की बनाई हुई व्याख्या के खिलाफ जो है उसे नष्ट कर दो. क्यूँ ? सिर्फ कुछ लोगों ठेकेदारी कर के तय करेंगे कि एक्सप्रेशन क्या और कैसा होना चाहिए ? यह तो फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन पे कुठाराघात है, जिस के पक्ष में सालों से सब चूप रहे एसे मौके पर भी मैं ने खुल के लिखा है. बलात्कार हो या टीजिंग. स्टेंड ले के लिखा है पुरातन मान्यता के खिलाफ. ओंर किलिंग, भ्रूण हत्या, किचन में स्त्री को बंध मत करना, लव मेरेज की छूट देना, कुपोषण , रिग्रेसिव ड्रेस कोड सब पर लिखा. पढ़े भी नहीं होंगे यह लेख. लेकिन ओफेंस के नाम पर गला घोंटना और अपनी सेंसिटीविटी को पचे नहीं उस को वल्गर कहना यह कौन सी कांगारु कोर्ट है ? राइटर क्या ऑर्डर पे डिश पेश करने वाला वेईटर है जो हर कोई उस को सीखाएगा की कैसे जीना चाहिये ? अपने पर्सनल प्रोफाइल पे क्या रखना चाहिए या क्या लिखना चाहिए ? आज कहेते है यह आपत्तिजनक है, कल कहेंगे यह टी शर्ट आपति जनक है . तो क्या टी शर्ट उतर के खड़ा हो जाय कोई ? यह तो और आपत्तिजनक हो जाएगा !
खुशवंत सिंह ने कहा था कि श्रेष्ठ सेंसर बोर्ड हमारी अपनी आँखे है. पसंद न हो वो देखो ही मत. कृति को नहीं, अपनी आँखों को बंध कर दो. हर एक आदमी पर्सनल सेंसर बोर्ड ले के बैठ जायेगा तो हर एक पेरेग्राफ को लिखते बोलते समय सर्जक घर घर जा कर एप्रूवल पूछता फिरे क्या ? रूल्स है, संविधान है, जैसे उपर स्पष्ट किया की कहीं इस का भंग नहीं है. एक मिनिट टिके नहीं कोर्ट में भी एसा पर्सनल बायस से किया हुआ बेतुका आक्षेप. इतने सारे ठोस सबूत तो यहाँ रख दिए है. उलटा मुज़े मानहानि के बदले में धन की प्रतीक्षा रहेगी. फेसबुक की स्पेस में फेसबुक तय करेगा क्या वल्गर है वो. उसके स्टैण्डर्ड में यह कतई आपत्तिजनक नहीं है. फ़रियाद के बावजूद उस ने पोस्ट हटाई नहीं. और बात अगर सामजिक स्वीकृति की है तो उस को सराहनेवाले बहुत ज्यादा है टीका करने वाले से. और समाज तो मान लो, बुरखा और घूँघट को स्वीकृति देगा, जीन्स को नहीं देगा तो के हर बात में नारी की स्वतंत्रता उस से भी तय करना जोखिमकारक है.
सिम्पल सी बात है. फेसबुक की पोस्ट कोई होर्डिंग नहीं है जो अपने आप दिखाई दे. यह पब्लिक प्लेस है यह कूथली – पंचात के लिए लोगोने पाला हुआ भ्रम है. मेरी पोस्ट या आर्टिकल किसी के घर की डोरबेल बजा के नहीं कहते के मुजे पढो. आप जब किसी को फोलो करते है, फ्रेंड बनते है या उस की पोस्ट सर्च करते है तब सोश्यल मीडिया की पोस्ट्स दिखाई देती है. या किताबे भी, फिल्मे भी. आप चोइस करते है. अगर पसंद नहीं आता तो रुक के देखते ही क्यों हो ? अनफोलो कर दो. ब्लोक कर दो , आगे चलो. आते ही क्यों हो ? हां, बात कर सकते हो कोमेंट कर सकते हो. यह आप का अधिकार है. उस को सुनना या जवाब देना न देना या मानना न मानना सर्जक का अधिकार है. फेक्च्युअल एरर होती है तब मैंने खुद काफी बार बिना कहे पब्लिकली इस का स्वीकार किया है. फेसबुक पोस्ट मेरा निजी आनन्द है, पुरस्कार थोडा कोई देता है ? लैला की तस्वीर से ज्यादा लाइकस तो दूसरे दिन मेरी खुद की कवर फोटो रखी तो मिली. अब पब्लिसिटी चाहिए किस को ?
लेकिन बात तो यह है कि कुछ तेजोद्वेश से, कुछ लोग इर्षा से. कुछ तो एटेन्शन सीकर असंतुष्ट भी है. कुछ भूतकाल में उन को सत्य सुना दिया उससे हर्ट हो गए उस के पोलिटिक्स की वजह से और कुछ इगो की वजह से पीछे पड जाते है. थोड़े बहुत नादानी की वजह से जेन्युइन सवाल उठा रहे है, वो शायद समज जाए. एक पर्सनल प्रोफाइल की फेसबुक और भारतीय सेंसर बोर्ड एप्रूव्ड तसवीर और भाषा वाली पोस्ट पे कुछ लोगो ने एसी प्रतिक्रिया दी जैसे पहली बार एसा देखा-पढ़ा हो. मतलब, सोचिये, अनजाने में विरोध में जुड़ के किसी की जूठ के आधार पर बनी मेलाफाइड साज़िश का आप हिस्सा तो नहीं बन रहे हो ? जय वसावडा ने जैसे बीच सडक पर लड़की छेड़ दी हो, किसी को अगवाह किया हो या बलात्कार कर दिया हो एसे रिएक्शन कुछ लोग दे रहे है. यह कोई देशभक्ति का महान कार्य है इस सोच कर जान से मार देने की धमकी को सराह भी रहे है ! जान तो उपरवाले की देन है, उस की मर्ज़ी तब ले लेगा. सुकरात और इसु और गाँधी को मार दिया तो और अमर हो गए उन के विचार.
मगर नुक्स और तो क्या ढूंढोगे मुज़ में ? शादी की नहीं को कोई अफेर या बीवी की प्रताड़ना की बात कर सके. कुंवारे इन्सान की गर्लफ्रेंडस होना तो गुनाह नहीं कहीं पे भी. मैं तो बिंदास जीता हूँ. फिर भी मैं तो किसी को सामने से मेसेज भी नहीं करता. किसी को जूठे वादे नहीं किये शादी के. चीटिंग नहीं की. घर पे आये तो विदा कर दिया इसे लोगो को. जो है वो पब्लिक में लिखता हूँ. प्राइवेट चेट नहीं करता. जैसा हूँ वैसा दीखता हूँ. मेरी आलोचना करने वाले काफी लोग दंभ करते है . पर्सनल लाइफ में एक चहेरा पब्लिक में दूसरा. मेरा तो यही चहेरा. शृंगाररस अगर मुजे प्रिय है तो खुल के कहता हूँ. व्यसन नहीं, शराब क्या चाय भी नहीं पीता. माँ की यथाशक्ति सेवा की. पिता की कर रहा हूँ. शिक्षा में भ्रष्टाचार देखा तो नौकरी छोड़ दी. कोई प्रवचन सामने से लिया नहीं. दान किया है मगर एक रुपये का कभी गबन नहीं किया. कलम या विचार को बेचा नहीं. मेहनत कर के यहाँ तक पहुंचा. आज तक परदे के पिछे कोई पोलिटिक्स नहीं किया. कितने सारे विषय पर लिखा है. अनेक जगहों पर बोला है. पैरन्टिंग और कृष्ण पर किताबे है सायंस पर है. कला, साहित्य, ज्ञान, प्रेम के बारे में लिखा है . तीन सौ लोगो का लिखित सन्देश है की मेरी किताब ‘जय हो ‘ पढ़ के आत्महत्या का विचार त्याग दिया. यह है मेरा एवोर्ड. पद्मश्री या नोबेल नहीं. समाज के बीच जा के बात रखता हूँ अपनी. हर विषय पे. कुछ आलोचकों की तरह मेरी सुई एक जगह पे जमी नहीँ रहती. विषयवैविध्य रखता हूँ अपार. लोकल सोच को ग्लोबल बनाने का ओपन एजेंडा है. और हमारी चैतन्यमय विरासत के मोती ढूंढ के नई पीढ़ी तक पहुँचाने का भी. जोर जबरदस्ती से बुलाता नहीं किसी को सुनने या किताब लेने. काम कर के पैसा लेता हूँ. एडवांस भी नहीं लेता. हां, दोस्तों को मदद करता हूँ. हर तरह से. मेरे सारथी को भी भाई मानता हूँ. तुच्छकार नहीं करता. पाठको को भी देता रहता हूँ. लोगो ने प्रेम दिया, इश्वर ने कृपा.
तो और कुछ न मिले तब जो हाथ में आ रहा हो उस की टांगखिंचाई के लिए कोई भी मुद्दा उछालो और वक्त बर्बाद करो बगैर स्टाफ के अकेले जी रहे आदमी का., खुद का भी. सब को अखरता यह है कि कोई इतने आनन्द या मस्ती में कुछ गलत किये बिना ही कैसे जी सकता है. असीम लोकप्रियता और प्रज्ञा बगैर पटाखों के जलन का धुँआ पैदा कर सकती है. मुजे दुःख यह नहीं होता कि मेरी आलोचना हुई. मुजे पीड़ा यह यह होती है मेरी वजह से मेरे लाखो चाहनेवालो को और कुछ बड़े महानुभाव जो मुज़े दिल से प्यार करते है उन को भी लोग खरीखोटी बेवजह सुना देते है. तब उन का विवेक पलायन हो जाता है. दूसरो को सलाह देते वक्त जिसकी दुहाई दी जाती है. लेकिन आनन्द भी है के काफी लोगो का सच्चा चहेरा मुझे दिख जाता है इस में. नरसिंह महेता ने वैष्णव जन जैसे कुछ भजन लिखे तो सैंकड़ो दैहिक खुले शृंगार के रासरतिक्रीडा के पद भी लिखे. लेकिन फिर भी अंदर से आध्यात्मिक सन्त रहे, दूसरो को भी सही रास्ता दिखाया. आप को जो पसंद आये वह पढ़िए. महेता जी तो कहेंगे ‘ ऐवा रे अमे एवा रे’. गांधी की अहिंसा, चरखा और ब्रह्मचर्य के विचार मुजे पसंद नहीं है. लेकिन मैं गांधीजी को बहुत प्यार करता हूँ. उन्होंने छूट दे रखी है. जो ठीक लगे उस को ग्रहण करो. और बाकी सब छोडो.
अच्छा है आज का सो कोल्ड फेमिनिज्म आया उससे पहले ‘लाल छड़ी मैदान खडी, क्या खूब लड़ी’ गाना आ गया. वर्ना शैलेन्द्र और शम्मी कपूर के उत्तरदायित्व पर ओब्जेकटीफिकेशन ऑफ़ विमेन की उंगलिया उठती ! खैर, दिवाली है. अमृत मंथन में विष की अंजलि निकलती है, लेकिन अमृत का कुम्भ. अपनी सडक जो शुध्ध नहीं करते कुत्तों या गंदकी से, ट्राफिक में बोल नहीं सकते, वो ऑनलाइन विचारशुध्धि और विरोध का झंडा ले के खड़े है. यह कोई रियल इश्यु है ? दया आती है यह माहौल देख के जहा असली समस्या को पड़कार फैंक नहीं सकते. मगर कोई ईमानदार इंसान हाथ में आये उसे तो सूली पे चडाने अंधेर नगरी के राजाजी घूम रहे है ! प्रसार माध्यमो के शब्दों के बारे भी में जिन का बेज़िक सामान्य ज्ञान नहीं है, वो खुद को लेखक या समाज के विवेचक बतियाते है.
मुजे अवश्य खेद है, अफ़सोस है के जिस का हेतु सिर्फ मुस्कान और आनन्द था उस वजह से कुछ लोग दुखी हो गए. जिन्होंने शालीनता से अपनी असहमति प्रगट की उन को प्रणाम. द्वेष तो मैं किसी के लिए रखता नहीं. कर्म का बंधन है वो. आसक्ति भी नहीं. मगर, कानून के दायरे में मुजे अपनी अभिव्यक्ति का हक़ है. और बहुत चीज है जिन के बारे में बोलना चाहिए. जैसे बीबीसी पर मैं प्रथम गुजराती पुरुष लेखक था जिस ने मासिक धर्म के बारे में स्त्री की वकालत की. यह भी मैं ही हूँ. और सौन्दर्य का रसिक भी मैं ही हूँ. चिदानन्द रूपम शिवोहम शिवोहम. मैं दूसरों की तरह नकाब नहीं पहनता डिप्लोमसी का. विरोध तो समझ बगैर विकृत कह के राजा रविवर्मा से ले कर राज कपूर तक किस का नहीं हुआ गुलामी के बाद जड़ता से हमारे यहाँ ? मगर खुल के जिन्होंने मेरा समर्थन किया उन का विशेष आभार. वो तो बहुत सारे है. और उन के लिए मैं जीता हूँ. उन की दुआ चलती है साथ. अब कोई वाद विवाद नहीं. कोई अगर कुछ लम्बा खींचे तो शुभचिंतको को अनुरोध है कि यह ब्लॉग पोस्ट की लिंक शेर कर दो. जैसी जिस की सोच.
रजनीश जी भारत की एक प्राचीन बोधकथा बार बार सुनाते थे. गुरु-शिष्य साथ में थे और नदी में डूबती भीगे वस्त्रोवाली सुंदर महिला दिखाई दी. शिष्य ने कंधे पे रख के बचा लिया. गुरु क्रोध में आ गये. धर्म भ्रष्ट हो गया, विलास का विकृत पाप हो गया एसा सुनाते रहे. एक सप्ताह बाद शिष्य ने कहा. मैंने तो उस स्त्री को किनारे पे छोड़ दिया था. लेकिन आप ने तो अभी भी बिठा के रखा है !
लैला की तस्वीर और पोस्ट धृणा से शेर करनेवालों ने और अभी तक एक छोटी सी मजाक को तूल देने वालो ने उस को अभी भी कंधे पे बिठा के रखा है ! 🙂 सब से बड़ा चिंता का विषय तो ऑनलाइन विश्व को इतना सीरियसली ले के जज बन जाना है. मैं तो अटल बिहारी वाजपेयीजी की तरह निरंतर काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ, गीत नया गाता हूँ… मेरे बहुत सारे रस है. बहुत कुछ पड़ा है भीतर और एक बात पर अटक कर, भटकता नहीं हूँ. सो बाद में मेरी बहुत पोस्ट आ गई. लक्ष्मी और भारतीय संस्कृति पर लेख आ गया. मैं ने भी काम-प्रवास कर लिये काफी. और उत्सव आ गया. पटाखे भी सुनाई देने लगे बाहर. आप सब को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं. मुजे जो पसंद नहीं करते उनको भी परमात्मा सुख दे, और थोड़ी सदबुद्धि भी ! 🙂
~ जय वसावड़ा #JV
sanket
October 16, 2017 at 10:47 PM
इसे कहते है धो डाला । Logic, research, comman sense 👌👌👌👌👌👌
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Harshal Panchal
October 17, 2017 at 7:42 AM
વાહ…. આને કહેવાય જવાબ…
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ALPAM
October 17, 2017 at 8:37 AM
ચોટદાર જવાબ
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Pradipkumar patel
October 17, 2017 at 9:29 AM
1 ball pe 10 jan na dandiya dull
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Jay vyad
October 17, 2017 at 9:44 AM
Khubaj saras zordar pratisad bhavishya ma aana karta kadak shabdo ma jawab aapsho
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Sneh
October 17, 2017 at 9:07 AM
E Facebook post nu translation Laila vaachse to kadaach ene pan potani sundarata ni aatli પ્રશંસા joi ne khushi thase..
Biji vaat, ahiya jo Laila ni jagya e jo Tom ke Leo no pic muki emni personality ni aa reet ni koi प्रशंसा kari hot to koi awaaz pan na karat..Offend thavana bahaana shodhta loko ne j aa post offend kari sake..baaki to tamaara vaachako maate to aa ek normal ane familiar JV post hati..
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vandana vaidya
October 17, 2017 at 5:53 PM
saheb now I feel guilty for my opinion about your post. neet 2017 ma gujarati medium na students ne je anyay thayo hato e vishay par aap koi article dwara temni help kari shako e mate me apne vinanti kari hati pan tamo e naa kahi tethi apna vishe purvagrah bandhi ne tamari post par comment kari . jo mare lidhe aap mushkeli ma mukaya ho to hu e darek mushkeli o mare mathe layi leva taiyaar chu , I am sorry again.
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Dr HANIF DODHIA
October 17, 2017 at 8:04 PM
જય
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Dr HANIF DODHIA
October 17, 2017 at 8:14 PM
જય મારે તો આ ફટાકા શબ્દ પર PHD કરવા માટે જોઈએ એવું બધું જ તમે અહીં આ બ્લોગ માં આપી દીધું છે. બેફીકર રહો મસ્ત રહો ચાહકો સાથે કનેક્ટ રહો સદા ખુશ રહો.દિપાવલી મુબારક.
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Rajesh Pandya
October 17, 2017 at 8:31 PM
Wow Jay Sir well said. Hypocrites ko karara JAWAB
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ચેતન પગી
October 17, 2017 at 8:31 PM
Meanwhile, self proclaimed पà¤à¤¾à¤à¤¾ 🙂
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જગદિશ પરમાર
October 17, 2017 at 8:58 PM
હા હા હા સુંદર જવાબ… દિલ ખુશ કર દિયા સરજી
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Sachde
October 17, 2017 at 9:28 PM
રિપોર્ટ અને નેગેટિવ કોમેન્ટ કરવા વાળા ને ટેગ ( ટાંગવા) કરવા જેવું છે 😉
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Husainali vohra
October 17, 2017 at 10:18 PM
………gujarati lekhko vanche bahu ochhu chhe…..salao vanchtajjj nathi……!!!!
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મનસુખલાલ ગાંધી
October 18, 2017 at 4:38 AM
Nice
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દિવ્યેશ ચંદ્રવાડીયા
October 18, 2017 at 12:16 PM
જડબાતોડ જવાબ
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mayursolanki
October 31, 2017 at 8:40 AM
aa loko aatla navra j kem padi jay 6 a j samjatu nthi..criticism no theko rakhvana badle kaik kam kro to saru…na gme to vat sambhlvi nthi kan a kai koi ni thunkdani nthi! jay Bhai or fatakdio share kro!
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Zeena rey
November 15, 2017 at 11:31 AM
😊
Quite imprassive!!!
Women r sculptures of gods defined beauty.
Thank god I am a woman and is beautiful
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